Truth of Life इंसान की पहचान काबिलियत से या गोरे रंग से

Truth of Life इंसान की पहचान काबिलियत से या गोरे रंग से

 

हम भारतीय लोग गोरी चमड़ी को बहुत महत्व देते हैं काबिलियत बाद में पढ़ते हैं कि व्यक्ति की काबिलियत क्या है पहले रूप रंग देखा जाता है बच्चा पैदा होते ही इंसानों को सुनता है यह सावला है या यह सांवली है ऐसा रंग तो हमारे परिवार में किसी का नहीं है पता नहीं इतना सावला रंग किसका ले लिया है ऐसे ताने सुन के लड़के और लड़कियां बड़े होते हैं जो दिखने में गोरे चिट्टे नहीं होते हैं उनको बार-बार सुनाया जाता है और उनका आत्मविश्वास तोड़ा जाता है उनमें हीन भावना महसूस कराई जाती है पर कई लड़के और लड़कियां इसकी परवाह नहीं करती और वह आगे बढ़ते चले जाते हैं सफलता को छूते हैं और फिर लोगों को बता देते हैं सिर्फ सावला रंग ही जिंदगी को पीछे करने के लिए नहीं है आपके गुण आपके व्यक्तित्व आपको हमेशा आगे की और लेकर जाते हैं Truth of Life इंसान की पहचान काबिलियत से या गोरे रंग से

 

अगर आप अभिनेत्री bipasha basu instagram पर पोस्ट पढ़े तो उन्होंने उसमें अपने बचपन से लेकर अब तक के अनुभव डाले हैं कि मैं सांवली थी तो लोगों ने मुझे बहुत कुछ बोला और जिस दिन मैंने सावली होकर सुपरमॉडल का खिताब अपने हाथ में लिया तो अखबारों ने मेरे नाम के साथ यह शब्द लगाया कि सांवले रंग वाली लड़की ने यह खिताब जीता है तो उस समय बिपाशा बसु लिखती है कि मुझे हैरानी हुई कि मेरी उपलब्धि को नहीं दिखा जा रहा मेरे सांवले रंग को पहले देखा गया उसको विशेषण के रूप में साफ लगाया गया लेकिन वह जो करना चाहती थी उसने अपनी जिंदगी में वह पाया इसी तरह से बिपाशा बसु की तरह ही और भी बहुत सारी अभिनेत्रियां हैं जो कई बार इन चीजों का जिक्र करती हैं कि समाज में आज भी जो लड़की चाहे वह योग्य है या वह किसी सीट पर बैठी है उसे पहले रंग के आधार पर देखा जाता है रंगभेद हमारी पूरी दुनिया में ऐसा कदम जमा चुके हैं की कंपनियों को अपने नामों के आगे से फेयर या फेयरनेस जैसे शब्दों को हटाना पड़ा

 

भारत में सिर्फ एक रंग की त्वचा वाले लोग नहीं पाए जाते यहां पर काले से लेकर गोरे तक हर तरह के लोग भारत में पाए जाते हैं यहां सुंदरता को नापने का पैमाना गोरा रंग है और इसका एक कारण यह भी हो सकता है बहुत वर्षों तक गोरे लोगों ने हमारे ऊपर राज किया और कहीं ना कहीं मन में यह बात बैठ गई कि जो गोरे होते हैं वही धनी होते हैं यह वही राज कर सकते हैं और धीरे-धीरे वह सुंदरता के पैमाने में आता चला गया विज्ञापनों में भी अब चाहे fair and lovely ad  देख लीजिए या फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन देख लीजिए या उनमें बोलते हुए मॉडल्स को देख लीजिए कि आपको 15 दिन में यह क्रीम जो है आपकी त्वचा को गोरा कर देगी और इसलिए यह क्रीम अच्छी है इसको लगाना चाहिए सामने और काले लोगों को इस को अपनी त्वचा पर प्रयोग करना चाहिए तो सुंदरता नापने का पैमाना ही गोरा रंग कर दिया गया

आंकड़ों की बात करें तो अखबारों में जो आंकड़े आ रहे हैं अकेले स्किन की केयर करने वाले उत्पादों का 58000 करोड रुपए का मार्केट है भारत के अंदर और अगर यही हाल रहा तो 2023 तक इसकी जो अनुमानित संख्या बताई गई है वह 73000 करोड रुपए का यह मार्केट हो जाएगा

पर पंजाबी में एक कहावत ( Punjabi Quotes) कही जाती है 

*चम चिटा ते कम फिटा*

 

अर्थात जिसकी गोरी चमड़ी है सिर्फ चमड़ी ही कोरी है इसको काम को ही नहीं आता उसी तरह से एक और कहावत आती है की सीरत देखी जाती है सूरत नहीं देखी जाती सीरत को कितनी देर तक चाट लोगे

 

अर्थात जो हमारे बुजुर्ग थे वह चोरी गोरी चमड़ी को इतना महत्व नहीं देते थे क्योंकि उन्हें पता था कि अगर मन का सौंदर्य नहीं है तो बाहर का सौंदर्य बहुत देर तक नहीं चलेगा अगर हमारे मन के अंदर सुंदरता है तो ही हमारी शारीरिक सुंदरता काम आएगी कोई व्यक्ति बहुत सुंदर है पर जब जैसे ही उसने बोलना शुरू किया तो उसकी उस की भद्दी वाणी जब लोगों के सामने आई तो लोगों से कितनी देर पसंद करेंगे

 

अगर इतिहास उठाकर देखें तो पहली जो मिस अश्वेत बनी थी वह जेनिफर हास्टटेन बनी थी 1970 में और पहली अश्वेत Miss Universe बनी थी Janelle Commission 1977 में

क्योंकि सौंदर्य का जो संबंध है वह रंग से नहीं बाद में कहीं न कहीं आकर हमेशा बुद्धि से आंका जाता है

 

हमारी फिल्म इंडस्ट्री भी इससे अछूती नहीं रही है क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री भी कहीं ना कहीं गहरे रंग से कतराती है अगर आप अभिनेत्री Nandita Das जो कि डायरेक्टर भी हैं वह हमेशा इस मुद्दे पर काम करती रही हैं और उन्होंने 2009 में dark is beautiful अभियान की भी शुरुआत की, Kangana Ranaut की बात करें तो उन्होंने कभी किसी फेयरनेस प्रोडक्ट की लिए काम नहीं किया

महिलाओं से रंगभेद की प्रथा बहुत पुरानी चली आ रही है पर आज की लड़कियां बगावती रुख अख्तियार कर रही हैं इसके लिए और जब लड़कियां अपनी बौद्धिक और दूसरी योग्यताओं से आगे आने लगी तो समाज को समझ में नहीं आ रहा कि अब क्या किया जाए क्योंकि अब महिलाओं ने सोच लिया कि उन्हें कुंठा मुक्त होना है और अपने रूप के बल पर नहीं अपने काम के बल पर होना है अपनी काबिलियत के बल पर आगे आसमान छूने हैं

 

सत्यम शिवम सुंदरम भी हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान है तो सुंदरता के साथ हम गोरे रंग को ना जोड़ें और रंगभेद के आधार पर किसी की काबिलियत को ना जांचें

 

Truth of Life इंसान की पहचान काबिलियत से या गोरे रंग से

 

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