गुरु नानक देव जी (1469-1539) सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु थे। उनकी शिक्षाएं न केवल सिख समुदाय के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रासंगिक और मार्गदर्शक हैं। उनका जीवन दर्शन सरलता, समानता और प्रेम पर आधारित था। आइए उनकी मुख्य शिक्षाओं को विस्तार से समझें। गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं: जीवन को रोशन करने वाला मार्गदर्शन
एक ओंकार – एक ईश्वर की अवधारणा
गुरु नानक देव जी की सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा “इक ओंकार” अर्थात एक ईश्वर की थी। उन्होंने कहा कि ईश्वर एक है, सर्वव्यापी है और सभी धर्मों का स्रोत एक ही परमात्मा है। उन्होंने मूर्ति पूजा और कर्मकांडों के बजाय सच्ची भक्ति और नाम स्मरण पर जोर दिया।
मूल सिद्धांत:
- ईश्वर निराकार, निर्गुण और सर्वव्यापी है
- वह जन्म-मृत्यु के चक्र से परे है
- सभी मनुष्य उसकी संतान हैं
नाम जपना – ईश्वर का नाम स्मरण
गुरु नानक जी ने नाम जपने अर्थात ईश्वर के नाम का निरंतर स्मरण करने पर बल दिया। उनका मानना था कि सच्चे मन से नाम जपने से मन शुद्ध होता है और मनुष्य ईश्वर के करीब आता है। यह केवल शब्दों का उच्चारण नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म से ईश्वर को याद रखना है।
किरत करना – ईमानदारी से जीविका कमाना
गुरु नानक देव जी ने ईमानदारी से परिश्रम करके जीविका कमाने की शिक्षा दी। उन्होंने कहा कि मनुष्य को अपने हाथों से मेहनत करके कमाना चाहिए और किसी को ठगकर या बेईमानी से कमाया धन त्याग देना चाहिए।
मुख्य संदेश:
- ईमानदारी से कार्य करना सबसे बड़ा धर्म है
- आलस्य और परजीविता त्यागनी चाहिए
- सम्मानजनक श्रम में कोई छोटा-बड़ा नहीं
वंड छकना – दूसरों के साथ बांटना
गुरु जी ने दान और परोपकार को बहुत महत्व दिया। उन्होंने “वंड छकना” अर्थात अपनी कमाई में से जरूरतमंदों के साथ बांटने की शिक्षा दी। लंगर की परंपरा इसी शिक्षा का प्रतीक है, जहां सभी को बिना किसी भेदभाव के भोजन परोसा जाता है।
सामाजिक समानता और भाईचारा
गुरु नानक देव जी ने जाति, धर्म, लिंग और सामाजिक स्तर के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव का विरोध किया।
प्रमुख शिक्षाएं:
- सभी मनुष्य समान हैं
- जाति-पाति का भेद निरर्थक है
- स्त्री-पुरुष समानता जरूरी है
- धार्मिक सहिष्णुता अनिवार्य है
उन्होंने अपने समय में प्रचलित सामाजिक कुरीतियों जैसे छुआछूत, सती प्रथा और स्त्रियों के प्रति भेदभाव का डटकर विरोध किया।
सच्चाई और नैतिकता
गुरु नानक जी का जीवन दर्शन सत्य पर आधारित था। उन्होंने कहा – “सच्चाई सर्वोच्च गुण है, लेकिन सच्चाई के साथ जीवन जीना उससे भी महान है।”
नैतिक मूल्य:
- हमेशा सत्य बोलना
- झूठ, चोरी और धोखाधड़ी से दूर रहना
- विनम्रता और सादगी अपनाना
- क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और काम पर नियंत्रण
गृहस्थ जीवन का महत्व
गुरु नानक देव जी ने सन्यास के बजाय गृहस्थ जीवन जीते हुए आध्यात्मिकता की शिक्षा दी। उन्होंने बताया कि परिवार और समाज में रहते हुए भी ईश्वर की भक्ति की जा सकती है।
संगत और पंगत
गुरु जी ने सत्संग अर्थात अच्छे लोगों की संगति को बहुत महत्व दिया। उन्होंने कहा कि अच्छे लोगों के साथ रहने से मन में सकारात्मक विचार आते हैं। पंगत (एक साथ बैठकर भोजन करना) के माध्यम से समानता का संदेश दिया।
सेवा और परोपकार
निस्वार्थ सेवा गुरु नानक जी की शिक्षाओं का केंद्रबिंदु है। उन्होंने कहा कि दूसरों की सेवा करना ईश्वर की सेवा के समान है।
सेवा के प्रकार:
- तन की सेवा – शारीरिक श्रम से सेवा
- मन की सेवा – दूसरों के लिए अच्छे विचार
- धन की सेवा – आर्थिक सहायता
आधुनिक युग में प्रासंगिकता
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं:
समसामयिक संदर्भ:
- धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध सहिष्णुता
- पर्यावरण संरक्षण (प्रकृति प्रेम)
- लैंगिक समानता
- ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा
- सामाजिक न्याय
उदमी चिंता – सकारात्मक कर्म
गुरु जी ने निराशा और नकारात्मकता को छोड़कर सकारात्मक कर्म करने की शिक्षा दी। उन्होंने कहा कि हमें अपने कर्मों के प्रति सचेत रहना चाहिए क्योंकि जैसा बोओगे वैसा काटोगे।
निष्कर्ष
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं सार्वभौमिक और कालजयी हैं। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जहां सभी मनुष्य समान हों, जहां प्रेम, करुणा और सत्य का राज हो। उनका संदेश सरल है – ईश्वर को याद रखो, ईमानदारी से जीवन जीओ और दूसरों के साथ बांटो।
आज के भौतिकवादी युग में जब मनुष्य तनाव, असमानता और अशांति से घिरा है, गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं एक प्रकाशस्तंभ की तरह हमारा मार्गदर्शन करती हैं। उनका जीवन और संदेश हमें याद दिलाता है कि वास्तविक धर्म प्रेम, समानता और मानवता की सेवा में है।
“नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला”
(नानक के नाम में ही भलाई है, तेरी इच्छा से सबका भला हो)
यही गुरु नानक देव जी की महान शिक्षाओं का सार है – सबके कल्याण की कामना और सबके साथ प्रेम।