Russia Ukraine War में क्या है नाटो की भूमिका
रूस ने यूक्रेन के खिलाफ जंग शुरू कर दी है पर कही ना कही बात करे रूस की इस सैन्य कार्रवाई के बारे में तो इसके पीछे NATO ( नाटो ) भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है। इसलिए चलिए आज आपको बताते है की आखिर नाटो से रूस आखिर इतना परेशान क्यों रह रहा है, की रूस को आखिर इतना बड़ा कदम उठाना पड़ रहा है वो भी जंग का, जिसका नतीजा बहुत बुरी तरह से भुगतने वाला है ये सारा वर्ल्ड
अगर बात की जाये नाटो की तो इसकी शुरुआत 1949 में हुई थी, जिसमे 30 देश हैं सदस्य शामिल है, नाटो के पुरे नाम की बात करे तो इसे हिंदी में उत्तर अटालांटिक संधि संगठन कहा जाता है और और इंग्लिश में North Atlantic Treaty Organization यानी की NATO, नाटो एक उत्तरी अमेरिका और यूरोपीय देशों का एक सैन्य संगठन है, नाटो का प्रमुख उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य माध्यमों से अपने सभी सदस्यों की स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना है
आपको बता दे की दुसरे विश्व युद्ध के बाद बने इस संगठन का उस समय मुख्य उद्देश्य सोवियत संघ के बढ़ते दायरे को लिमिट में करने का था, जब नाटो बना तो इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल इसके कुल 12 संस्थापक सदस्य थे, लेकिन अब वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या कुल 30 हो चुकी है। इसमें नए मेम्बर की बात करे तो नॉर्थ मैसेडोनिया साल 2020 में इसमें शामिल होने वाले सबसे नया मेंबर है
नाटो का प्रमुख उदेश्य है सदस्यों की सुरक्षा का आश्वासन और किसी बुरी स्तिथि में उनके साथ खड़ा होना, हालंकि नाटो के बनने के समय जो समझौता हुआ था उसके तहत इसमें शामिल होने वाले सभी यूरोपीय देशों के लिए ओपन डोर की नीति अपनाई गई थी, जिसके अंतर्गत इसमें कोई भी यूरोपीय देश शामिल हो सकता था, यही नहीं इसके साथ ही साथ इसमें सदस्य देशों के लिए एक सुरक्षा का प्रावधान भी था, इसमें साझा सुरक्षा को लेकर एक घोषणा पत्र में अुनच्छेद भी है। इसके तहत कहा गया है कि यदि कोई बाहरी देश इसके सदस्य देशों पर हमला करता है तो फिर सभी सदस्य देश मिलकर उसकी रक्षा करेंगे।
वैसे यूक्रेन नाटो का मेंबर नहीं है इसलिए नाटो के देश सीधे तौर पर उसकी हेल्प के लिए आगे नहीं आ सकते हैं। हालांकि, अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा सीधे तौर पर यूक्रेन की मदद कर रहे हैं। सदस्य बनने के लिए यूरोपीय देश होना जरूरी, नाटो का सदस्य बनने के लिए यूरोपीय देश होना जरूरी शर्त है। हालांकि, अपनी पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से नाटो ने कई अन्य देशों से भी अपने संपर्क स्थापित किए हैं। अल्जीरिया, मिस्र, जॉर्डन, मोरक्को और ट्यूनिशिया भी नाटो के सहयोगी हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी नाटो की भूमिका रही है।
इसलिए तो रूस नहीं चाहता की यूक्रेन को नाटो की मेम्बरशिप मिले, पिछले काफी समय से यूक्रेन के नाटो में शामिल होने को लेकर चर्चा चल रही है। फिलहाल तो यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने को लेकर कोई अंतिम फैसला नहीं किया है। हाँ अगर यूक्रेन ये फैसला ले ले और नाटो में शामिल होता है तो फिर मौजूदा स्थिति के अनुसार नाटो की सेनाएं यूक्रेन की सीमाओं पर स्थायी मौजूदगी हो जाएगी। एस्टोनिया और लातविया नाटो के सदस्य हैं। ये दोनों देश पहले सोवियत संघ का हिस्सा थे। यूक्रेन के नाटो का हिस्सा बनने की सूरत में रूस हर तरफ से अपने दुश्मन देशों से घिर सकता है। ऐसे में रूस नहीं चाहता है कि नाटो का विस्तार हो।
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