नवरात्री हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसमें नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। इस पावन पर्व के पहले दिन देवी शैलपुत्री की आराधना की जाती है। आइए जानते हैं इस विशेष देवी के बारे में विस्तार से। नवरात्री के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा
देवी शैलपुत्री का परिचय
शैलपुत्री शब्द का अर्थ है ‘पर्वतों की पुत्री’। हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें पर्वतराजकुमारी के नाम से भी जाना जाता है। माँ शैलपुत्री माँ दुर्गा का प्रथम रूप हैं और नवदुर्गाओं में प्रथम हैं।
इस रूप में देवी:
- एक हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं
- दूसरे हाथ में कमल का फूल रखती हैं
- श्वेत वृषभ (नंदी) पर सवार होती हैं
देवी शैलपुत्री का महत्व
माँ शैलपुत्री को सृष्टि की आदिशक्ति माना जाता है। वे ब्रह्मांड की उत्पत्ति, पालन और संहार की प्रतीक हैं। इनकी आराधना से:
- मूलाधार चक्र का जागरण: मानव शरीर में स्थित मूलाधार चक्र का जागरण होता है, जिससे शारीरिक और मानसिक ऊर्जा का संतुलन होता है।
- शक्ति और साहस: भक्तों में शक्ति, साहस और दृढ़ता का संचार होता है।
- अड़चनों का निवारण: जीवन की कठिनाइयों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
- आध्यात्मिक उन्नति: भक्तों के आध्यात्मिक मार्ग को प्रशस्त करती हैं।
पूजा विधि
शुभ मुहूर्त
नवरात्री के पहले दिन घट स्थापना के बाद देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इसके लिए प्रातः काल का समय सर्वोत्तम माना जाता है।
पूजन सामग्री
- लाल फूल और चुनरी
- धूप, दीप
- अखंड ज्योति
- रोली, चंदन, कुमकुम
- लाल चंदन
- मिश्री या गुड़
- देवी शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र
पूजा विधान
- स्नान के बाद: शुद्ध स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण करें।
- देवी की स्थापना: देवी की मूर्ति या चित्र को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके स्थापित करें।
- कलश स्थापना: एक कलश में जल भरकर उसमें सुपारी, पाँच अनाज, सिक्के और पंचपल्लव रखें।
- मंत्र जाप: निम्न मंत्र का जाप करें:
“वंदे वांछित लाभाय चंद्रार्ध कृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥” - आरती: देवी की आरती उतारें।
- प्रसाद: मिष्ठान्न (मिश्री या गुड़) का प्रसाद चढ़ाएं।
देवी शैलपुत्री की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती के रूप में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने से पहले, उन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया था। इसके बाद उन्होंने हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया और इसी रूप को शैलपुत्री कहा जाता है।
शैलपुत्री रूप में देवी ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी अटूट भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया।
नवरात्री के पहले दिन के व्रत का महत्व
नवरात्री के पहले दिन का व्रत विशेष महत्व रखता है। इस दिन व्रत रखने से:
- साधक का शरीर शुद्ध होता है
- सात्विक विचारों का उदय होता है
- देवी की कृपा प्राप्त होती है
- आत्मबल और आत्मविश्वास बढ़ता है
निष्कर्ष
नवरात्री के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा हमें अपने जीवन में दृढ़ता, साहस और आत्मविश्वास से भरती है। यह हमें याद दिलाती है कि जीवन के कठिन पथ पर चलते हुए भी अपने लक्ष्य से विचलित नहीं होना चाहिए। जैसे माँ शैलपुत्री ने कठोर तपस्या के द्वारा अपने लक्ष्य को प्राप्त किया, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में संघर्षों का सामना करते हुए आगे बढ़ना चाहिए।
माँ शैलपुत्री की कृपा सभी भक्तों पर बनी रहे और उनका आशीर्वाद हम सबको प्राप्त हो, यही कामना है।