नवरात्री के चौथे दिन: मां कूष्मांडा की पूजा और महत्व

नवरात्री हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसमें नौ दिनों तक माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन एक विशेष देवी की आराधना होती है, जिसका अपना महत्व, कथा और पूजा विधि है। नवरात्री के चौथे दिन मां कूष्मांडा देवी की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं इस दिन के बारे में विस्तार से। नवरात्री के चौथे दिन: मां कूष्मांडा की पूजा और महत्व

मां कूष्मांडा का परिचय

माँ कूष्मांडा नवदुर्गा के चौथे स्वरूप हैं। ‘कू’ का अर्थ है ‘थोड़ा’ और ‘उष्मा’ का अर्थ है ‘ऊष्मा या गर्मी’। इसलिए, ‘कूष्मांडा’ का अर्थ है वह देवी जो अपनी थोड़ी सी मुस्कान से ब्रह्मांड को ऊर्जा और गर्मी प्रदान करती हैं। मान्यता है कि इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने वाली आदिशक्ति ही माँ कूष्मांडा हैं।

माता कूष्मांडा का स्वरूप

माँ कूष्मांडा का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और दिव्य है। इनकी आठ भुजाएँ हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। इनकी सात भुजाओं में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा शोभायमान हैं। आठवें हाथ में इनके माला या जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला है।

इनका वाहन सिंह है और ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इनका वर्ण लाल या गुलाबी है, जो शक्ति और प्रेम का प्रतीक है।

पूजा विधि

नवरात्री के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा निम्नलिखित तरीके से की जाती है:

  1. स्नान और शुद्धि: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को स्वच्छ रखें और देवी का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
  3. कलश स्थापना: एक कलश में जल भरकर उसमें पांच पत्ते और एक नारियल रखें।
  4. पंचोपचार पूजा: धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत और पुष्प से देवी की पूजा करें।
  5. मंत्र जाप: माँ कूष्मांडा के मंत्रों का जाप करें। मुख्य मंत्र है:

    ॐ देवी कूष्मांडायै नमः

  6. भोग: माँ कूष्मांडा को मालपुआ, हलवा, और कद्दू का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा, लाल रंग के फल जैसे सेब, चेरी आदि चढ़ाए जाते हैं।
  7. आरती: पूजा के अंत में आरती करें और माँ का आशीर्वाद प्राप्त करें।

मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व

माँ कूष्मांडा की पूजा से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

  1. स्वास्थ्य लाभ: माना जाता है कि माँ कूष्मांडा की कृपा से रोग-दोष दूर होते हैं और दीर्घायु प्राप्त होती है।
  2. आत्मशक्ति का विकास: इनकी पूजा से आत्मविश्वास बढ़ता है और आंतरिक शक्ति का विकास होता है।
  3. कष्टों का निवारण: माँ कूष्मांडा भक्तों के सभी कष्टों को दूर करती हैं और शांति प्रदान करती हैं।
  4. सकारात्मक ऊर्जा: इनकी पूजा से घर और आस-पास का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भर उठता है।
  5. मनोकामना पूर्ति: माँ कूष्मांडा भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करती हैं और उन्हें सफलता प्रदान करती हैं।

पौराणिक कथाएँ

कहा जाता है कि जब इस सृष्टि की रचना नहीं हुई थी, तब चारों ओर अंधकार ही अंधकार था। उस समय माँ कूष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की और इसे अपनी दिव्य ऊर्जा से प्रकाशित किया। इसलिए, इन्हें सृष्टि की आदि शक्ति माना जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार, माँ कूष्मांडा ने अपनी तपस्या से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और उन्हें वरदान में मांगा कि वे उनके पुत्र बनें। भगवान विष्णु ने उनकी इच्छा पूरी की और माँ कूष्मांडा के पुत्र के रूप में जन्म लिया।

उपवास और व्रत

नवरात्री के चौथे दिन, व्रत रखने वाले भक्त सुबह-शाम मां कूष्मांडा की पूजा करते हैं। कई लोग इस दिन फलाहार करते हैं या फिर एक समय भोजन करते हैं। व्रत के दौरान लहसुन, प्याज, और नमक का सेवन वर्जित है।

रंग और वस्त्र

माँ कूष्मांडा को लाल रंग अत्यंत प्रिय है। इसलिए, नवरात्री के चौथे दिन लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। महिलाएं विशेष रूप से लाल साड़ी, सूट या लहंगा पहनती हैं और पुरुष लाल कुर्ता या शर्ट पहन सकते हैं।

निष्कर्ष

नवरात्री के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा हमें सिखाती है कि जीवन में प्रकाश और ऊर्जा का महत्व कितना है। माँ कूष्मांडा की कृपा से हम अपने जीवन में अंधकार को दूर कर सकते हैं और सकारात्मक ऊर्जा से भर सकते हैं। इस दिन, हम सभी को अपने अंदर की दिव्य शक्ति को पहचानने और उसे जगाने का प्रयास करना चाहिए। माँ कूष्मांडा की पूजा हमें आत्मविश्वास, धैर्य और सकारात्मकता का संदेश देती है।

माँ कूष्मांडा की कृपा और आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे।

जय माँ कूष्मांडा!

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