नवरात्रि पर्व हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों की नौ दिनों तक आराधना की जाती है। इस पवित्र पर्व के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है, जिन्हें सप्तम दुर्गा या सप्तमी माता भी कहा जाता है। नवरात्री के सातवें दिन – माँ कालरात्रि की आराधना
माँ कालरात्रि का स्वरूप
माँ कालरात्रि देवी दुर्गा का सबसे भयानक और शक्तिशाली रूप हैं। इनका वर्ण काला है, बिखरे हुए बाल, गले में विद्युत की तरह चमकती माला, तीन नेत्र और नाक से अग्नि की लपटें निकलती हुई दिखाई देती हैं। माँ कालरात्रि चार भुजाओं वाली हैं, जिनमें एक हाथ में खड्ग (तलवार) और दूसरे में लोहे का काँटा (अयसशूल) धारण किए हुए हैं। अन्य दो हाथों में वरदान और अभय मुद्रा में हैं। वे गधे पर सवार होती हैं।
इनके रूप को देखकर भले ही भय लगे, परंतु ये भक्तों को सदैव आशीर्वाद और सुरक्षा प्रदान करती हैं। इसीलिए इन्हें “शुभंकरी” भी कहा जाता है।
पूजन विधि
पूजन का शुभ मुहूर्त
नवरात्रि के सातवें दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर पवित्र हो जाना चाहिए। सप्तमी तिथि पर सूर्योदय से लेकर अभिजित मुहूर्त तक माँ कालरात्रि की पूजा की जा सकती है।
पूजन सामग्री
- लाल फूल और वस्त्र
- कुमकुम, रोली, मौली और अक्षत (चावल)
- धूप, दीप, नैवेद्य (भोग)
- गुड़ और शहद
- पान और सुपारी
- सूखे मेवे और फल
- काली मिट्टी या सरसों का तेल
पूजन की विधि
- स्नान और शुद्धि: सबसे पहले स्वयं को पवित्र करें।
- कलश स्थापना: पूजा स्थल पर जल से भरा कलश स्थापित करें।
- देवी आवाहन: माँ कालरात्रि का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें।
- पंचोपचार पूजा: गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से पूजन करें।
- मंत्र जाप: “ॐ कालरात्र्यै नमः” मंत्र का जाप करें।
- आरती: दीप जलाकर आरती करें और भक्ति गीत गाएँ।
- प्रसाद वितरण: पूजा के उपरांत प्रसाद का वितरण करें।
माँ कालरात्रि का मंत्र
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥ वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
माँ कालरात्रि की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव और माँ पार्वती चंडमुंड नामक राक्षसों का वध करने के लिए कालरात्रि रूप में प्रकट हुईं, तब उन्होंने अपने भयंकर रूप से सभी असुरों का संहार किया था। इसके पश्चात देवी ने अपना रूप बदलकर गौरी रूप धारण किया था।
एक अन्य कथा के अनुसार, जब महिषासुर के साथ युद्ध में माँ दुर्गा ने अपना रूप बदला था, तब उन्होंने कालरात्रि रूप धारण किया था और अपनी प्रचंड शक्ति से उसका वध किया था।
माँ कालरात्रि का महत्व
माँ कालरात्रि की पूजा से सभी प्रकार के भय, बुरे विचार और कष्ट दूर होते हैं। वे अपने भक्तों को निर्भीकता प्रदान करती हैं। इनके आशीर्वाद से भूत-प्रेत और नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
नवरात्रि के सातवें दिन इनकी पूजा से:
- अशुभ ग्रहों का प्रभाव: समाप्त होता है
- रोग और बीमारियां: दूर होती हैं
- मानसिक शांति: प्राप्त होती है
- आध्यात्मिक उन्नति: होती है
- जीवन में सफलता: मिलती है
पूजन में रखी जाने वाली सावधानियां
- माँ कालरात्रि की पूजा में काले रंग के वस्त्र न पहनें।
- पूजा स्थल और मंदिर में पूर्ण पवित्रता रखें।
- पूजा के दौरान मांसाहार और मदिरापान से दूर रहें।
- कालरात्रि माता को उनके प्रिय भोग गुड़ या शहद अवश्य अर्पित करें।
नवरात्रि के सातवें दिन का महत्व
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा साधक को सातवें चक्र ‘विशुद्धि’ को जागृत करने में सहायता करती है। यह चक्र कंठ में स्थित होता है और इसका संबंध वाणी और अभिव्यक्ति से है। इस चक्र के जागृत होने से व्यक्ति में निर्भीकता, सत्य बोलने की शक्ति और अच्छे स्वास्थ्य का लाभ मिलता है।
उपसंहार
माँ कालरात्रि अंधकार को नष्ट करने वाली हैं और ज्ञान के प्रकाश को फैलाने वाली हैं। उनकी भयंकर छवि के पीछे एक अत्यंत दयालु और करुणामयी माँ छिपी हैं, जो अपने भक्तों के कष्टों को हरने वाली हैं। नवरात्रि के सातवें दिन उनकी पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से पूजा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करें और जीवन में सफलता और शांति पाएँ।