Kabir Ke Dohe कबीर के दोहे, जो जिंदगी से लड़ने की ताकत दे
संत कबीर के बारे में प्रचलित है कि ना तो वह हिंदू थे ना ही मुसलमान वह एक शानदार व्यक्तित्व के मालिक थे इस संसारी दुनिया के हम होने के बावजूद भी वह जाति धर्म और दुनियादारी की सब बातों से परे थे कबीर दास जी के दोहे हमें जिंदगी से लड़ने की ताकत देते हैं हर मुश्किल में से निकलना सिखाते हैं सबके दिलों में भाईचारे और प्यार की भावना को जगाते हैं कबीर के दोहे संबल बढ़ाने के काम आते हैं
देशभर में कबीर दास जी के दोहे बड़े प्यार से पढ़े और सुने जाते हैं स्कूल के बच्चों से लेकर हिंदी साहित्य तक सभी को कबीर दास जी के दोहे पढ़ाए जाते हैं
कबीर की वाणी का संग्रह डीजे के नाम से मशहूर है जिसके तीन भाग है रमैनी सबद और साखी उनकी रची हुई बानियों की तुलना किसी भी अन्य रचना से नहीं की जा सकती
Kabir ke Dohe ( कबीर के दोहे )
1) कबीर बादल प्रेम का,हम पर बरसाए
अंतर भीगी आत्मा हरि भई बनराई
2) मन के हारे हार है,मन के जीते जीत है।
कहे कबीर गुरु पाइये,मन ही के प्रतीत।
3) बुरा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल
हरि का सिमरन छोड़ कर घर ले आया माल
4) कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
5) कबीर हमारा कोई नहीं हम काहू के नाहिं
पारै पहुंचे नाव ज्यौं मिलिके बिछुरी जाहिं
6) पढ़े गुनै सीखै सुनै मिटी न संसै सूल।
कहै कबीर कासों कहूं ये ही दुःख का मूल ॥
7) कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ।
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।
8) कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय।
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।
9) माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर ।
10) कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।।
11) कबीर थोड़ा जीवना, मांड़े बहुत मंड़ाण।
कबीर थोड़ा जीवना, मांड़े बहुत मंड़ाण॥
12) कबीर प्रेम न चक्खिया,चक्खि न लिया साव।
सूने घर का पाहुना, ज्यूं आया त्यूं जाव॥
13) कबीर रेख सिन्दूर की काजल दिया न जाई।
नैनूं रमैया रमि रहा दूजा कहाँ समाई ॥
14) कबीर सीप समंद की, रटे पियास पियास ।
समुदहि तिनका करि गिने, स्वाति बूँद की आस
15) कबीर सीप समंद की, रटे पियास पियास ।
समुदहि तिनका करि गिने, स्वाति बूँद की आस
16) धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
17) लूट सके तो लूट ले,राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछ्ताओगे,प्राण जाहि जब छूट ॥
18) काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी,बहुरि करेगा कब ॥
19) साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
20) दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
21) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
22) रात गंवाई सोय कर दिवस गंवायो खाय ।
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय ॥
23) पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
24) माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
25) बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
26) संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।
27) तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।
28) जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।।
29) बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥
30) जिहि घट प्रेम न प्रीति रस, पुनि रसना नहीं नाम।
ते नर या संसार में , उपजी भए बेकाम ॥