दशहरा: बुराई पर अच्छाई की विजय का त्योहार

दशहरा भारत के सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन त्योहारों में से एक है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और पूरे देश में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। आइए इस त्योहार के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से जानें। दशहरा: बुराई पर अच्छाई की विजय का त्योहार

दशहरा ऐतिहासिक महत्व

दशहरा का त्योहार रामायण से जुड़ा हुआ है। यह दिन भगवान राम द्वारा लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त करने की याद में मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने दस सिरों वाले राक्षस राजा रावण का वध किया था। इसलिए इस त्योहार को ‘विजयदशमी’ भी कहा जाता है।

दशहरा त्योहार का समय और अवधि

दशहरा हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। यह आमतौर पर सितंबर-अक्टूबर के महीने में पड़ता है। इससे पहले नवरात्री के नौ दिन मनाए जाते हैं, जिसमें मां दुर्गा की पूजा की जाती है। इस साल 2024 में दशहरा 12 अक्टूबर दिन शनिवार को मनाया जा रहा है

दशहरा मनाने का तरीका

रामलीला का मंचन
दशहरे से पहले कई दिनों तक रामलीला का मंचन किया जाता है
रामायण की कहानी को नाटक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है
अंतिम दिन रावण के पुतले का दहन किया जाता है

क्षेत्रीय विविधता
भारत के विभिन्न हिस्सों में दशहरा अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है:
1. उत्तर भारत: रामलीला और रावण दहन
2. पश्चिम बंगाल: दुर्गा पूजा का समापन
3. गुजरात: गरबा और दांडिया नृत्य
4. मैसूर: भव्य मैसूर दशहरा उत्सव

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

दशहरा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि इसका गहरा सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है:

एकता का प्रतीक: यह त्योहार लोगों को एक साथ लाता है
सांस्कृतिक विरासत: पारंपरिक कलाओं और लोक संस्कृति को जीवंत रखता है
नैतिक शिक्षा: अच्छाई की बुराई पर विजय का संदेश देता है

आधुनिक समय में दशहरा

वर्तमान समय में दशहरे का स्वरूप कुछ बदला है:

डिजिटल माध्यमों से लाइव रामलीला प्रसारण
पर्यावरण के अनुकूल रावण दहन
सोशल मीडिया पर त्योहार की झलक

पारंपरिक व्यंजन

दशहरे के अवसर पर कई विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं:
लड्डू
हलवा
पूरी
खीर

दशहरा समापन

दशहरा भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि अंततः सत्य और धर्म की विजय होती है। यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है और पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी परंपराओं को जीवंत रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज के समय में भी इस त्योहार की प्रासंगिकता बनी हुई है, जो हमें जीवन में अच्छाई और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

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