देव दिवाली का इतिहास और महत्व – जब देवताओं ने मनाई दिवाली

कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला पर्व ‘देव दिवाली’ हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह वह दिन है जब स्वयं देवताओं ने दिवाली मनाई थी। आइए जानें इस पावन पर्व के बारे में विस्तार से। देव दिवाली का इतिहास और महत्व – जब देवताओं ने मनाई दिवाली, इस साल देव दिवाली कार्तिक पूर्णिमा 15 नवम्बर 2024 को मनाई जा रही है

देव दिवाली का इतिहास और महत्व

देव दिवाली का संबंध भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर के वध से जुड़ा है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। इस विजय की खुशी में देवताओं ने काशी में दीप जलाकर उत्सव मनाया, जिसे ‘देव दिवाली’ के नाम से जाना जाता है।

काशी में देव दिवाली का विशेष महत्व

काशी (वाराणसी) में देव दिवाली का विशेष महत्व है। इस दिन:

– गंगा घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं
– विश्वनाथ मंदिर विशेष रूप से सजाया जाता है
– भक्तगण गंगा स्नान करते हैं
– शाम को आरती का विशेष आयोजन होता है

देव दिवाली के पारंपरिक रीति-रिवाज

प्रातः काल के कार्य

– सूर्योदय से पहले स्नान
– तुलसी पूजन
– शिव पूजन
– गंगा स्नान (जहां संभव हो)

दिन के दौरान

– व्रत रखना
– मंदिर दर्शन
– दान-पुण्य
– भजन-कीर्तन

सांयकाल के कार्य

– दीप प्रज्वलन
– गंगा आरती
– प्रसाद वितरण

देव दिवाली की विशेषताएं

1. आध्यात्मिक महत्व: यह दिन आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।

2. सामाजिक एकता: समाज के सभी वर्गों के लोग मिलकर इस पर्व को मनाते हैं।

3. प्राकृतिक सौंदर्य: दीपों से जगमगाते घाट और मंदिर अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

मान्यताएं और आस्था

देव दिवाली से जुड़ी कुछ प्रमुख मान्यताएं हैं:
– इस दिन किया गया दान-पुण्य विशेष फलदायी होता है
– गंगा स्नान से पापों का नाश होता है
– देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है

उपसंहार

देव दिवाली हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक अमूल्य हिस्सा है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि बुराई पर अच्छाई की विजय होती है और प्रकाश हमेशा अंधकार को दूर करता है। आज के समय में भी इस पर्व की प्रासंगिकता बनी हुई है, जो हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़े रखती है।