नवरात्रि के नौ पवित्र दिनों में से सातवाँ दिन माँ कालरात्रि को समर्पित है। यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन माँ दुर्गा के सबसे भयंकर और शक्तिशाली रूप की उपासना की जाती है। माँ कालरात्रि का नाम सुनते ही मन में एक दिव्य भय और श्रद्धा का भाव उत्पन्न होता है। वे अंधकार की देवी हैं और सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश करने वाली हैं। नवरात्रि सप्तमी: माँ कालरात्रि की पूजा विधि और महत्व
माँ कालरात्रि का स्वरूप
माँ कालरात्रि का रूप अत्यंत भयानक और तेजस्वी है। उनका वर्ण काला है, बाल खुले हुए हैं, और तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड के अतीत, वर्तमान और भविष्य को देखते हैं। उनकी चार भुजाएं हैं – दाहिनी ऊपरी भुजा में खड्ग, नीचली में वरदान की मुद्रा, बाईं ऊपरी भुजा में कमंडल और नीचली में अभय मुद्रा है। वे गर्दभ (गधे) पर सवार हैं और उनके नासिका से अग्नि निकलती रहती है।
यद्यपि उनका रूप भयानक है, परंतु वे अपने भक्तों के लिए अत्यंत कल्याणकारी हैं। उनका यह भयावह रूप केवल दुष्टों और राक्षसों के लिए है, जबकि भक्तों के लिए वे परम कल्याणकारी हैं।
धार्मिक महत्व
पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, जब शुम्भ-निशुम्भ राक्षसों का आतंक बढ़ा तो माँ दुर्गा ने कालरात्रि का रूप धारण किया था। इस रूप में उन्होंने चण्ड-मुण्ड जैसे महान राक्षसों का वध किया था। रक्तबीज नामक राक्षस का वध करने के लिए भी माँ ने इसी रूप को अपनाया था, क्योंकि उसके रक्त की एक-एक बूंद से नया राक्षस जन्म लेता था।
आध्यात्मिक महत्व
आध्यात्मिक दृष्टि से माँ कालरात्रि अज्ञानता रूपी अंधकार का नाश करने वाली हैं। वे साधक के अंतर्मन से डर, भय, नकारात्मकता और बुराई को समाप्त करती हैं। उनकी उपासना से व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के संकट, बाधाएं और दुःख दूर हो जाते हैं।
पूजा विधि
पूजा की तैयारी
समय: सप्तमी के दिन प्रातःकाल 6 बजे से 10 बजे तक या संध्याकाल 6 बजे से 8 बजे तक पूजा करना सबसे उत्तम माना जाता है।
पूजा स्थान: घर के पूजा घर को स्वच्छ करके लाल या काले रंग के वस्त्र से सजाएं। माँ की मूर्ति या चित्र के सामने दीप प्रज्वलित करें।
आवश्यक सामग्री
- माँ कालरात्रि की मूर्ति या चित्र
- कलश (जल से भरा)
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
- फल (विशेषकर अनार और नारियल)
- मिठाई (खीर, हलवा, या गुड़ के लड्डू)
- धूप-दीप
- कुमकुम, हल्दी, चावल
- लाल या काले रंग के फूल
- बेल पत्र
- काला तिल
- सरसों का तेल
- लाल वस्त्र
विधि-विधान
1. स्नान और संकल्प
सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर हाथ में चावल, फूल और जल लेकर संकल्प लें: “आज सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की कृपा प्राप्ति के लिए पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से पूजा कर रहा हूँ।”
2. कलश स्थापना
पूजा स्थान पर कलश स्थापित करें और उसमें गंगाजल या शुद्ध जल भरें। कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें और नारियल स्थापित करें।
3. माँ कालरात्रि का आह्वान
मंत्र का जाप करते हुए माँ का आह्वान करें:
ऊं देवी कालरात्र्यै नमः
आगच्छ भगवति कालरात्रि, इहागच्छ इह तिष्ठ।
4. पंचोपचार पूजा
- गंध: कुमकुम और हल्दी का तिलक लगाएं
- पुष्प: लाल या काले फूल चढ़ाएं
- धूप: धूप जलाकर आरती करें
- दीप: सरसों के तेल का दीप प्रज्वलित करें
- नैवेद्य: माँ को मिठाई और फल का भोग लगाएं
5. पंचामृत अभिषेक
माँ की मूर्ति का पंचामृत से अभिषेक करें और फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं।
6. वस्त्र और आभूषण
माँ को लाल या काले रंग का वस्त्र अर्पित करें और आभूषण चढ़ाएं।
7. मंत्र जाप
निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें:
बीज मंत्र: “ऊं क्रीं कालिकायै नमः” स्तुति मंत्र: “एकवेणी जपाकर्ण नग्ना खड्गधारिणी। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥”
प्रत्येक मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।
आरती और प्रार्थना
पूजा के अंत में माँ कालरात्रि की आरती करें:
जय कालरात्रि माता, जय कालरात्रि माता।
अंधकार हारी, दुष्ट संहारी, जय कालरात्रि माता॥
काली काली महाकाली, काल को भी खाने वाली।
भय हरने वाली माता, जय कालरात्रि माता॥
तू ही शक्ति तू ही भक्ति, तू ही जग की आदि शक्ति।
सबका उद्धार करने वाली, जय कालरात्रि माता॥
व्रत और नियम
उपवास विधि
सप्तमी के दिन व्रत रखना अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि पूर्ण उपवास संभव न हो तो फलाहार करें। व्रत में निम्न चीजों का सेवन कर सकते हैं:
- फल (केला, सेब, अनार)
- दूध और दूध से बने पदार्थ
- सिंघाड़े का आटा
- साबूदाना
- आलू (बिना प्याज-लहसुन के)
विशेष नियम
- इस दिन काले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है
- तामसिक भोजन (मांस, मछली, अंडा) का त्याग करें
- क्रोध और नकारात्मक विचारों से बचें
- सरसों का तेल दान करना विशेष फलदायक है
- रात्रि जागरण करके माँ का भजन-कीर्तन करें
सप्तमी का महत्व
ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष के अनुसार सप्तमी तिथि सूर्य देव से संबंधित है। इस दिन सूर्य की किरणों में विशेष शक्ति होती है जो नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है। माँ कालरात्रि भी अंधकार नाशिनी हैं, इसलिए यह दिन उनकी उपासना के लिए सर्वोत्तम है।
सामाजिक महत्व
यह दिन समाज से अन्याय और अत्याचार को समाप्त करने की प्रेरणा देता है। माँ कालरात्रि न्याय की देवी हैं और वे हमेशा सत्य के पक्ष में खड़ी रहती हैं।
माँ कालरात्रि की कृपा के लाभ
व्यक्तिगत लाभ
- भय और चिंता से मुक्ति
- मानसिक शांति और स्थिरता
- शत्रुओं पर विजय
- रोग और कष्टों से छुटकारा
- आत्मविश्वास में वृद्धि
आध्यात्मिक लाभ
- कुण्डलिनी शक्ति का जागरण
- नकारात्मक ऊर्जा का नाश
- आध्यात्मिक शक्ति का विकास
- मोक्ष की प्राप्ति में सहायता
सांसारिक लाभ
- धन-संपत्ति में वृद्धि
- व्यापार में सफलता
- न्यायालयी मामलों में विजय
- पारिवारिक सुख-शांति
विशेष अनुष्ठान
तंत्र साधना
तंत्र साधकों के लिए यह दिन विशेष महत्वपूर्ण है। श्मशान में या एकांत स्थान पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह साधना केवल योग्य गुरु के निर्देशन में ही करनी चाहिए।
सामुदायिक पूजा
कई स्थानों पर सामुदायिक रूप से भव्य पूजा का आयोजन होता है। हवन-यज्ञ, भजन-कीर्तन और सत्संग का कार्यक्रम होता है।
सावधानियां
पूजा संबंधी सावधानियां
- पूजा के दौरान पूर्ण शुद्धता बनाए रखें
- मन में श्रद्धा और भक्ति का भाव रखें
- गलत मंत्र उच्चारण से बचें
- पूजा अधूरी न छोड़ें
व्यक्तिगत सावधानियां
- किसी का अहित न सोचें
- दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करें
- झूठ और छल-कपट से बचें
निष्कर्ष
नवरात्रि का सातवाँ दिन माँ कालरात्रि की असीम कृपा प्राप्त करने का पावन अवसर है। उनकी भक्ति करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मनुष्य को अभय की प्राप्ति होती है। माँ कालरात्रि की उपासना केवल भय और अंधकार को दूर करने के लिए नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है।
भक्त को चाहिए कि वह पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से माँ की उपासना करे। माँ का यह भयानक रूप केवल दुष्टों के लिए है, भक्तों के लिए वे सदैव कल्याणकारी हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति न केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति करता है, बल्कि परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त हो जाता है।
इस पावन दिन पर सभी भक्तगण माँ कालरात्रि की शरण में जाकर उनसे अपने कल्याण की प्रार्थना करें। माँ की जय हो, माँ कालरात्रि की जय हो!
जय माता दी! हर हर महादेव!