बच्चों के नैतिक और शारीरिक विकास में माता पिता और शिक्षकों की भूमिका
बच्चा जब पैदा होता है इस संसार में आता है तो उसको यह नहीं पता होता कि वह जिस दुनिया में आया है इस के घर पैदा हुआ है क्यों पैदा हुआ है और उसे इस दुनिया में आकर कैसे चलना है तो बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है वह अपने माता की गोद से बहुत सारी चीजों को सुनता है देखता है और घर में जो आप का वातावरण है उसके हिसाब से अनुकरण करता है अब माता-पिता बच्चे के नैतिक और शारीरिक विकास में कैसे सहायक हो सकते हैं कुछ चीजों पर ध्यान रखकर
सिर्फ बच्चे के शिक्षा पर ध्यान केंद्रित मत करें
आजकल के माता-पिता की सबसे बड़ी गलती है कि वह पैदा होते ही बच्चे की शिक्षा की तरफ लग जाते हैं कि हमारा बच्चा दुनिया के सारे कंपटीशन जीतकर और दुनिया का सबसे स्मार्ट बच्चा बन जाए चाहे उसका बौद्धिक विकास हो या ना हो तो इसलिए जरूरी है कि हम शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के शारीरिक विकास पर भी ध्यान दें
सिर्फ बच्चे को हर एक्टिविटी के लिए बांधकर मत रखें
आजकल माता-पिता ने छोटे होते से ही बच्चों को बांध कर रखना शुरू कर दिया है इतने बजे स्कूल से आना है इतने बजे आपकी डांस क्लास है इतने बजे आपकी चैस क्लास है इतने बजे आपकी बास्केटबॉल क्लास है इतने बजे आपको गाना सिखाने वाला आना है कितने बजे आपकी ड्राइंग क्लास है जब हम बच्चों को अपने मन का कुछ नहीं करने देते तो बच्चों का जो विकास है वह वहीं पर रुक जाता है इसलिए बहुत जरूरी है कि हम बच्चों को अपनी मर्जी से कुछ ऐसे खेलकूद करने दें जिसमें उन्हें मजा आता हो
बच्चों को समय ना देना बच्चों के विकास की सबसे बड़ी बाधा
आजकल जब बच्चे माता-पिता से रिक्वेस्ट करते हैं कि आप थोड़ा समय मेरे पास बैठिए कुछ समय मेरे पास साथ खेलिए तो माता-पिता समय देने की बजाय उनको जो आधुनिक गैजेट्स हैं वह उन्हें दे देते हैं बजाय वक्त देने कि उन्हें चॉकलेट दे दी उन्हें खाने-पीने पीने की वजह से अच्छी-अच्छी चीजें मंगा दी पर अपना जो सही क्वालिटी टाइम बच्चे के साथ बैठने का है वह नहीं देते जिस करके बच्चों का नैतिक विकास नहीं होता है
आप अपने बच्चों को सही नैतिक शिक्षा तभी दे पाएंगे जब आप अपने घर में उन सब चीजों का अनुकरण करेंगे कि झूठ नहीं बोलना चोरी नहीं करनी यह जो हम कार्य कर रहे हैं इसके अच्छे और गलत परिणाम क्या हो सकते हैं वह हम खेल खेल में बच्चे को सब कुछ सिखा सकते हैं पर बच्चों के सामने हमारा अपना जो चरित्र है वह अनुकरणीय होना चाहिए 50% शिकायतें या समस्याएं वही खत्म हो जाती हैं अगर हम अपनी जिंदगी में बच्चों के सामने ठीक चल रहे हैं
बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े
आज जिंदगी जीने के लिए हमारे पास बहुत सारे गैजेट हैं जो हम भी इस्तेमाल करते हैं और हम अपने बच्चों को भी इस्तेमाल कर आते हैं पर फिर भी लगातार डिप्रेशन के मामले बढ़ते चले जा रहे हैं और बच्चों का विकास जो है वह रुकता चला जा रहा है वह क्यों क्योंकि हम बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से नहीं जुड़े हमारे समय में हम लोग संयुक्त परिवारों में रहते थे अगर माता-पिता को वक्त नहीं मिलता था तो दादा-दादी या और घर के जो लोग थे वह भावनात्मक रूप से बच्चों के साथ जुड़े होते थे उनको हर चीज में सहयोग करते थे अब भावनात्मक जो समय है वह लगातार कम होता चला जा रहा है क्योंकि हम अपनी जिंदगी की आपाधापी में इतने शामिल हो गए हैं कि हमारे पास बच्चों के पास बैठने का वक्त ही नहीं है हम सिर्फ उन्हें एक चीज से मात्र हैं कि बच्चों बच्चे एजुकेशन में कैसे आगे हो जब बच्चों का आईक्यू कैसा विकसित हो तो हमें बच्चों का आई क्यू नहीं उनका इमोशनल क्वेश्चन देखना बड़ा जरूरी है
बच्चे को नैतिक और अनैतिक व्यवहार की जानकारी देना और उसके दुष्परिणामों को भी उम्र के हिसाब से उनको बताना
माता-पिता को बढ़ती उम्र के बच्चों के साथ बैठकर बात करनी चाहिए एवं छोटे होते से बच्चे को गलत सही का ज्ञान भी देना चाहिए कि यह जो कार्य हम कर रहे हैं यह गलत है इस पर आपको डांट पड़ेगी और जैसे जैसे बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता है तो उसे गलत सही की जानकारी देना बड़ा जरूरी है हम वही पूजा पाठ के लिए जा रहे हैं तो बच्चा उसमें भी कारण पूछता है तो हमें उसके मन में उभरते प्रश्नों को दबाना नहीं है उसको उसके हर प्रश्न का जवाब देना है तभी बच्चा सही चीजों को सीख पाएगा हम मंदिर क्यों जा रहे हैं हम गुरुद्वारे क्यों जा रहे हैं हम पूजा-पाठ क्यों कर रहे हैं और या हम भी किसी गरीब को खाना क्यों खिला रहे हैं हमारे मन में दया भाव कैसे आ सकता है और हमें दूसरे की सहायता कैसे करनी चाहिए क्यों करनी चाहिए यह सब चीजें हमें छोटे होते से अपने बच्चों को सिखानी है आजकल हर घर में एक दो बच्चे हैं तो बच्चों को आपस में बांटने की जो कला है वह नहीं आती है तो जब वह कहीं बाहर किसी ऑफिस में या बिजनेस में काम करने जाते हैं तो वह क्योंकि उनको बचपन से शेयरिंग की आदत नहीं है तो वहां जाकर तंग होते हैं और डिप्रेशन में आते हैं तो इस पर बहुत जरूरी है काम करना बहुत जरूरी है
शारीरिक विकास के लिए खान-पान पर ध्यान देने की जरूरत
आजकल प्रचलन बढ़ गया है कि घर में खाना कम बनता है और बाहर से आर्डर ज्यादा होकर आता है और बच्चे भी जैसे जैसे स्कूलों में जाते हैं उन्हें भी बाहर के खाने की आदत पड़ती चली जाती है क्योंकि हर बच्चे के टिफिन में कोई ना कोई ऐसी आइटम रहती है जो बच्चा घर आकर अपनी मां से आकर ज़िद करता है है कि मुझे भी ऐसी ही चीज खानी है तो आप कोशिश करिए कि बच्चे को जो खानपान हैं उसके ऊपर पूरा ध्यान रखा जाए बाहर के खाने को कम से कम घर में मंगाया जाए आपको खुद के ऊपर भी अंकुश रखना होगा और खानपान के साथ-साथ बच्चे की शारीरिक गतिविधियों पर भी ध्यान देना होगा कि वह बैठे-बैठे सिर्फ सारा दिन वीडियो गेम नहीं खेलता रहे या टीवी पर ही ना रहे या मोबाइल पर ही ना करें कुछ देर आपको भी साथ निकलना पड़े तो जरूर निकलिए बच्चे को रेत में खिलाना या मिट्टी में खिलाना बड़ा जरूरी है उससे उसकी जो है इम्यूनिटी लेवल बढ़ेगा आजकल के माता-पिता जरा सा बच्चों को गंदा होना पसंद नहीं करते पर अगर हम यही चाहते हैं कि उनकी इम्यूनिटी लेवल स्ट्रांग हो तो उसे रेत और मिट्टी में खेलने देना चाहिए मना नहीं करना चाहिए और खाने-पीने में अच्छे आहार को भिन्न प्रकार से बनाकर उसकी डाइट में शामिल करना चाहिए और बच्चा जब कोई खेलने की एक्टिविटी कर रहा है तो कोशिश करिए आप भी उसके साथ लें इससे आपको भी थोड़ा सा वर्कआउट मिलेगा
बच्चे का सर्वागीण विकास माता-पिता चाहते तो हैं पर क्या माता-पिता उस हिसाब से अपने बच्चों को वक्त दे पा रहे हैं या सब कुछ अध्यापकों पर ही छोड़कर फ्री हो जाना चाहते हैं अध्यापकों के पास तो बच्चे दो से 4 घंटे रहेंगे हम उन्हें डरा धमका कर डर दिखाकर हम उनसे स्कूल का काम तो करा सकते हैं परंतु असल जो ट्रेनिंग है बच्चे के नैतिक और शारीरिक विकास कि वह घर से ही है तो माता-पिता को यह चाहिए कि बच्चों को जो समय दे वह क्वालिटी समय दें ताकि आप अपने बच्चे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ कर उसे उसके शारीरिक और नैतिक विकास में सहायक हो सके
अध्यापक भी बच्चों के शारीरिक व नैतिक विकास में सहायक होते है
How to develop positive teacher-student relationships
अध्यापक बच्चों में निम्नलिखित गुण पैदा करते हैं
जब कोई बच्चा क्लास में झूठ बोलता है तो अध्यापक उसे ऐसा करने से मना करता है या किसी की कॉपी में से नकल करता है परंतु इसके साथ साथ अध्यापक को बुद्धिमान भी होना चाहिए कि जो कहानियों के माध्यम से बच्चों में यह सब चीजें डाल सके और उसे भी बच्चों को यह बताना चाहिए कि ईमानदारी जिंदगी में कैसे आपको आगे लेकर जाएगी और बेईमानी आपको जिंदगी में कैसे पीछे लेकर जाएगी
एक प्यार की थपकी के माध्यम से
एक बच्चा जब बहुत अच्छा कार्य करता है तो अध्यापक जब उसे सारी क्लास के सामने उसको उसकी प्रशंसा करता है तो बच्चे में वह गुण अपने आप आ जाता है कि मुझे अच्छा कार्य करना है तो मुझे सबके सामने प्रश्न सेट किया जाएगा और अगर कोई बच्चा गलत कार्य कर रहा है तो अध्यापक क्लास में सबके सामने कुछ ना बोल कर उस बच्चे को अलग से समझाता है तो उसमें बच्चे के विकास की संभावना पूरी होती है जब अध्यापक बच्चों के गलत कार्यों को बाकी बच्चों के सामने नहीं लाता
बच्चों की जिम्मेवारी एक बहुत बड़ी जिम्मेवारी होती है एक अध्यापक के ऊपर क्योंकि यह बच्चे ही हमारे देश का भविष्य बनते हैं और अध्यापक उन्हें जिम्मेवार बनाते हैं कि उन्हें घर से अपनी कॉपी किताबें पूरी लेकर आने हैं अनुशासित रहना है उनकी यूनिफॉर्म सही तरीके की होनी चाहिए क्लास में टाइम पर आना है क्लास में शरारत नहीं करनी है और अध्यापक भी अपनी क्लास में नियत समय पर पहुंचकर बच्चों को यह आभास कराता है कि क्लास एक नियत समय पर शुरू होगी एक नियत समय पर खत्म होगी प्रार्थना जैसी शक्ति के साथ स्कूल में जोड़ा जाता है बच्चों को खाने-पीने के मेहनत के गुण वह स्कूल में सिखाए जाते हैं और दूसरे बच्चों को अगर स्कूल में खेलते कूदते चोट लग जाती है तो अध्यापक दूसरे बच्चों को जिम्मेवारी देते हैं कि इस बच्चे को उठाओ इसकी फर्स्ट एड बॉक्स लाकर इसकी फर्स्ट ऐड करो और दूसरों की सहायता करना भी सिखाते हैं साथ ही साथ अध्यापक बच्चों को दयावान होना भी सिखाते हैं और जो स्टेज पर बोलने का या अपने आप को स्टेज पर चलाने का गुण है वह एक अध्यापक ही सिखा सकता है
अतः माता-पिता को भी चाहिए अगर वह अपने बच्चे का सर्वागीण विकास चाहते हैं तो अध्यापक अगर आपके बच्चे को स्कूल में कुछ कहता है किसी गलत बात पर टोकता है तो अध्यापक की शिकायत ना करें क्योंकि यह आपके बच्चे के विकास के लिए अच्छा नहीं होगा एक टीचर जो बच्चे को पढ़ा रहा है वह हमेशा यह चाहेगा कि उसके बच्चे सब जगह अव्वल आए
इसलिए समाज में अगर हमें अपनी युवा पीढ़ी को सशक्त नैतिक मूल्यों से भरपूर और उनका शारीरिक विकास का विश्वास था ध्यान रखना है तो माता-पिता और अध्यापकों को दोनों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा तो ही हम एक युवा पीढ़ी देश को अच्छी दे पाएंगे