जिसने प्रेम करना सीख लिया वही जिंदगी जी गया

जिसने प्रेम करना सीख लिया वही जिंदगी जी गया

 

सभी मनुष्य अक्सर यह कहते हैं कि मेरा हृदय प्रेम से भरा हुआ है पर क्या वह वास्तव में प्रेम करता है जिस पल आपको यह पता लग गया कि हर व्यक्ति के हृदय में प्रभु बसते हैं उस क्षण हर व्यक्ति मैं ईश्वर को देखना शुरू कर देंगे 

 

 

प्रभु की सबसे सर्वश्रेष्ठ रचना मानव है और मानव एक सर्वोच्च प्राणी है इंसान अपने इसी जन्म में मुक्ति तो प्राप्त करना चाहता है पर उसके ऊपर काम नहीं करना चाहता क्योंकि अगर उसे मुक्ति प्राप्त करनी है तो उसे बहुत सारा काम करना पड़ेगा लोग जीवन से प्रेम करते हैं परंतु मृत्यु से प्रेम नहीं करते जहां पर मृत्यु से प्रेम करने का अर्थ है कि सब में ईश्वर देखते हुए समान रूप से रहना बाहरी दुनिया में हमारा आचरण वैसे ही हो जैसा हम अंदर से हैं क्योंकि हमारे जो विचार हैं वही हमें बनाते हैं हमारा मन सुंदर है या बदसूरत हम जैसा सोच रहे हैं ऐसा बनते चले जाते हैं पर अगर हमने जिंदगी में एक नियम अपना लिया प्रेम तो हम जिंदगी की सभी चीजों को पा लेंगे और सही मायने में जिंदगी जी लेंगे क्योंकि जो प्रेम करना जानता है उसको प्रेम मिलता भी है पर जो स्वार्थ में रहना चाहता है वह हर पल मरता है यकीन मानिए इस दुनिया की सभी जी से बहुत सुंदर भी है पवित्र भी है क्योंकि ऊपर वाले ने बनाई है अगर हमें किसी चीज में बुराई दिखती है तो वह बुराई उस चीज में नहीं हमारी दृष्टि में है हमने उसे सही तरीके से नहीं देखा
सत्य को हम कितनी बार भी किसी भी तरीके से बोल ले उसका प्रारूप नहीं बदलेगा वह हमेशा सत्य ही रहेगा इसलिए हमेशा लोगों से सच्चाई आत्मविश्वास से भर कर कहो कई बार सच्चाई जब हम बोलते हैं तो सामने वाले को कष्ट भी होता है पर अगर हम इस पर ध्यान देंगे तो हम प्रेम नहीं कर पाएंगे सिर्फ ऊपर वाले के सामने सर झुकाने का नियम बना ले मनुष्यों के सामने सर झुकाने का नियम मत बनाओ
जिंदगी में अगर अध्यात्मिक शक्ति पाना चाहते हो तो शारीरिक शक्ति भी उतनी ही जरूरी है जब हम खुद को कमजोर समझ लेते हैं तो हम अपनी शक्ति को खुद ही खत्म कर लेते हैं हम जैसा सोचते हैं वैसा बन जाते हैं अगर हम निर्बल अपने आप को मानते हैं तो हम निर्बल बन जाते हैं सबल मानते हैं तो सफल बन जाते हैं वही तुम्हें कुछ सिखा नहीं सकता आपकी आत्मा से अच्छा कोई आपका अध्यापक नहीं है
आपको एक कहानी के माध्यम से मैं समझाना चाहती हूं
एक बार एक व्यक्ति किसी संत के पास जाते हैं और वह कहते हैं कि मैं ईश्वर को नहीं मानता मैं तो सिर्फ उसी चीज को मानता हूं जो मुझे दिखती है अगर आप कहते हैं कि आपका ईश्वर सर्वत्र उपलब्ध है तो मुझे साबित करके दिखाइए, तो महात्मा कहते हैं मैं साबित तुम्हारे ही शब्दों से तुम्हारी चीज को करूंगा जो तुम पूछना चाह रहे हो क्योंकि मैं तो ईश्वर तुम्हारे अंदर भी देख रहा हूं पर तुम मेरे अंदर ईश्वर को नहीं देख पा रहे हो इसलिए तुम्हें चीजों का ज्ञान नहीं हो रहा 
अब आप मुझे यह बताइए कि क्या आपके पास दिमाग है तो वह व्यक्ति थोड़ा क्रोधित होता है और वह कहता है महात्मा आप मुझसे यह क्या प्रश्न पूछ रहे हैं क्या बिना दिमाग के मैं आपसे यह पूछ रहा हूं कि ईश्वर को साबित करिए दिमाग है तभी तो आपसे इतना बड़ा प्रश्न पूछ रहा हूं . महात्मा उसको उसके शब्दों में ही जवाब देते हैं कि अगर आपके पास दिमाग है तो मुझे उसे दिखाइए वह कहता है दिमाग में आपको कैसे दिखा सकता हूं दिमाग कोई दिखाने की चीज थोड़ी ना है यह तो जो आप अपने शब्दों से बोल रहे हो या अपनी ज्ञान शक्ति का समझ का प्रयोग कर रहे हो आपका दिमाग है
महात्मा ने कहा तो यही तो मैं भी आपको समझाना चाह रहा हूं कि अगर आप अपना दिमाग किसी को नहीं दिखा सकते तो ईश्वर भी इस पृथ्वी पर उसी प्रारूप में उपस्थित है वह हर जगह हर पल विद्यमान है, महात्मा ने उस व्यक्ति से पूछा क्या तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का जवाब मिल गया तो वह मनुष्य महात्मा के चरणों में गिर गया कि मैं किस तरह के मूर्खता भरे प्रश्न पूछ रहा था
जरूरी नहीं कि जो चीज दिखाई ना दे वह अस्तित्व में नहीं है ईश्वर हर पेड़ पौधे हर मनुष्य और जानवर के अंदर समाया है बस हम अपने अंदर एक प्रेम वाली भावना को जागृत कर ले तो फिर हमें ईश्वर छवि हर रूप में दिखाई दे और हम जिंदगी के सही मायने जान जाएंगे कि अगर जिंदगी जीनी है तो प्रेम को जिंदगी में उतारना होगा अगर ईश्वर के समीप जाना चाहते हैं तो प्रेम को बांटना होगा जितना प्रेम बाटेंगे उतना प्रेम आपको जिंदगी में मिलना शुरू हो जाएगा और आप प्रभु की असीम कृपा का अनुभव करेंगे
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