बेटी की विदाई पर इमोशनल कविता .

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 हुआ जब कन्यादान  पूरा, फिर आया समय विदाई का  हँसी ख़ुशी सब काम हुआ था, फिर सारी रस्म अदाई का.

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 अचानक बेटी के उस कातर स्वर ने,बाबुल को झकझोर दिया वो पूछ रही थी पापा तुमने,क्या सचमुच में मुझे छोड़ दिया.

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 मै रहती अपने आँगन की फुलवारी,मुझको सदा पल  मेरे रोने को पल भर भी,बिल्कुल नहीं सहा मन.

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 क्या आपके इस आँगन के कोने में, मेरा कोई स्थान नहीं. अब मेरे रोने का पापा,क्या आपको बिल्कुल ध्यान नहीं.

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 देखो अन्तिम बार देहरी पर , सब लोग मुझे पुजवाते हैं आकर के पापा क्‍यों इनको, आप क्यों नहीं धमकाते हैं.

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 नहीं रोकते चाचा ताऊ, अब भैया से भी आस नहीं ऐसी भी क्‍या हुआ है अब , की कोई आता पास नहीं.

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 बेटी की ऐसी बातों को सुन के,पिता नहीं रह सका खड़ा उमड़ पड़े आँखों से आँसू,बदहवास सा वो दौड़ पड़ा.

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 कातर बछिया सी वह बेटी,लिपट पिता से रोती थी जैसे यादों के अक्षर वह,आंसू बिंदु से धोती थी.

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 माँ को लगा गोद से कोई,मानो सब कुछ छीन चला फूल सभी घर की फुलवारी से कोई ज्यों बीन चला.

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 छोटा भाई भी कोने में,बैठा बैठा सुबक रहा उसको कौन करेगा चुप अब,वह कोने में दुबक रहा.

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 बेटी के जाने पर घर ने,जाने कया क्‍या खोया है कभी न रोने वाला बाप,फूट फूट कर रोया है.

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